पंचाक्षर मन्त्रके माहात्म्यका वर्णन
‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र को पंचाक्षर मंत्र (Panchakshar Mantra) बोला जाता है ।
पंचाक्षर का शाब्दिक अर्थ संस्कृत में ‘पांच अक्षर’ है और यह पांच पवित्र अक्षरों न, म, शि, वा और य को संदर्भित करता है।
आदि शंकराचार्य द्वारा लिखी गई भगवान शिव की प्रार्थना –नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय है, और यह शिव के मंत्र ओम नमः शिवाय से जुड़ी है । इसलिए नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय को भी पंचाक्षरी मंत्र कहा जाता है। इस स्तोत्र के पाँच श्लोक क्रमशः न, म, शि, वा, य अक्षरों से शुरू होते हैं।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवाय पर आधारित है।न – पृथ्वी तत्त्व काम – जल तत्त्व काशि – अग्नि तत्त्व कावा – वायु तत्त्व का औरय – आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
शिव पुराण में पंचाक्षर मंत्र के महातम्य का बहुत ही विस्तृत वर्णन किया हुआ है । यहाँ हम शिव पुराण में जो ” ॐ नमः शिवाय ” मंत्र के महत्व को बताया गया है उसका वर्णन कर रहे हैं :-
श्रीकृष्ण बोले- सर्वज्ञ महर्षिप्रवर! आप सम्पूर्ण ज्ञानके महासागर हैं। अब मैं आपके मुखसे पंचाक्षर-मन्त्र के माहात्म्यका तत्त्वतः वर्णन सुनना चाहता हूँ।
उपमन्युने कहा- देवकीनन्दन ! पंचाक्षर मन्त्रके माहात्म्यका विस्तारपूर्वक वर्णन तो सौ करोड़ वर्षोंमें भी नहीं किया जा सकता; अतः संक्षेपसे इसकी महिमा सुनो- वेदमें तथा शैवागममें दोनों जगह यह षडक्षर (प्रणवसहित पंचाक्षर) -मन्त्र समस्त शिवभक्तोंके सम्पूर्ण अर्थका साधक कहा गया है। इस मन्त्रमें अक्षर तो थोड़े ही हैं, परंतु यह महान् अर्थसे सम्पन्न है। यह वेदका सारतत्त्व है। मोक्ष देनेवाला है, शिवकी आज्ञासे सिद्ध है, संदेहशून्य है तथा शिवस्वरूप वाक्य है।
यह नाना प्रकारकी सिद्धियोंसे युक्त, दिव्य, लोगोंके मनको प्रसन्न एवं निर्मल करनेवाला, सुनिश्चित अर्थवाला (अथवा निश्चय ही मनोरथको पूर्ण करनेवाला ) तथा परमेश्वरका गम्भीर वचन है। इस मन्त्रका मुखसे सुख- उच्चारण होता है। सर्वज्ञ शिवने सम्पूर्ण देहधारियोंके सारे मनोरथोंकी सिद्धिके लिये इस ‘ॐ नमः शिवाय’ मन्त्रका प्रति पादन किया है। यह आदि षडक्षर-मन्त्र सम्पूर्ण विद्याओं (मन्त्रों) का बीज (मूल) है। जैसे वटके बीजमें महान् वृक्ष छिपा हुआ है, उसी प्रकार अत्यन्त सूक्ष्म होनेपर भी इस मन्त्रको महान् अर्थसे परिपूर्ण समझना चाहिये ।
‘ॐ’ इस एकाक्षर-मन्त्रमें तीनों गुणोंसे – अतीत, सर्वज्ञ, सर्वकर्ता, द्युतिमान्, सर्वव्यापी प्रभु शिव प्रतिष्ठित हैं। ईशान आदि जो सूक्ष्म एकाक्षररूप ब्रह्म हैं, वे सब ‘नमः शिवाय’ इस मन्त्रमें क्रमशः स्थित हैं। सूक्ष्म – षडक्षर मन्त्रमें पंचब्रह्मरूपधारी साक्षात् भगवान् शिव स्वभावतः वाच्यवाचक- भावसे विराजमान हैं। अप्रमेय होनेके कारण शिव वाच्य हैं और मन्त्र उनका वाचक माना गया है।
शिव और मन्त्रका यह वाच्य- वाचकभाव अनादिकालसे चला आ रहा है। जैसे यह घोर संसारसागर अनादिकाल से प्रवृत्त है, उसी प्रकार संसारसे छुड़ानेवाले भगवान् शिव भी अनादिकालसे ही नित्य विराजमान हैं। जैसे औषध रोगोंका स्वभावतः शत्रु है, उसी प्रकार भगवान् शिव संसार- दोषोंके स्वाभाविक शत्रु माने गये हैं।
यदि ये भगवान् विश्वनाथ न होते तो यह जगत् पूर्वक अन्धकारमय हो जाता; क्योंकि प्रकृति जड है और जीवात्मा अज्ञानी । अतः इन्हें प्रकाश देनेवाले परमात्मा ही हैं। प्रकृतिसे लेकर परमाणुपर्यन्त जो कुछ भी जडरूप तत्त्व है, वह किसी बुद्धिमान् (चेतन) कारणके बिना स्वयं ‘कर्ता’ नहीं देखा गया है।
जीवोंके लिये धर्म करने और अधर्मसे बचनेका उपदेश दिया जाता है। उनके बन्धन और मोक्ष भी देखे जाते हैं। अतः विचार करनेसे सर्वज्ञ परमात्मा शिवके बिना प्राणियोंके आदिसर्गकी सिद्धि नहीं होती। जैसे रोगी वैद्यके बिना सुखसे रहित हो क्लेश उठाते हैं, उसी प्रकार सर्वज्ञ शिवका आश्रय न लेनेसे संसारी जीव नाना प्रकारके क्लेश भोगते हैं।
अतः यह सिद्ध हुआ कि जीवोंका संसारसागरसे उद्धार करनेवाले स्वामी अनादि सर्वज्ञ परिपूर्ण सदाशिव विद्यमान हैं। वे प्रभु आदि, मध्य और अन्तसे रहित हैं। स्वभावसे ही निर्मल हैं तथा सर्वज्ञ एवं परिपूर्ण हैं। उन्हें शिव नामसे जानना चाहिये। शिवागममें उनके स्वरूपका विशदरूपसे वर्णन है। यह पंचाक्षर-मन्त्र उनका अभिधान (वाचक) है और वे शिव अभिधेय (वाच्य) हैं। अभिधान और अभिधेय (वाचक और वाच्य )-रूप होनेके कारण परमशिवस्वरूप यह मन्त्र ‘सिद्ध’ माना गया है।
‘ॐ नमः शिवाय’ यह जो षडक्षर शिववाक्य है, इतना ही शिवज्ञान है और इतना ही परमपद है। यह शिवका विधि-वाक्य है, अर्थवाद नहीं है। यह उन्हीं शिवका स्वरूप है, जो सर्वज्ञ, परिपूर्ण और स्वभावतः निर्मल हैं।
जो समस्त लोकों पर अनुग्रह करने वाले हैं, वे भगवान् शिव झूठी बात कैसे कह समस्त लोकोंपर अनुग्रह सकते हैं? जो सर्वज्ञ हैं, वे तो मन्त्रसे जितना फल मिल सकता है, उतना पूरा- का पूरा बतायेंगे। परंतु जो राग और अज्ञान आदि दोषोंसे ग्रस्त हैं, वे ही झूठी बात कह सकते हैं। वे राग और अज्ञान आदि दोष ईश्वरमें नहीं हैं; अतः ईश्वर कैसे झूठ बोल सकते हैं? जिनका सम्पूर्ण दोषोंसे कभी परिचय ही नहीं हुआ, उन सर्वज्ञ शिवने जिस निर्मल वाक्य- पंचाक्षर मन्त्रका प्रणयन किया है, वह प्रमाणभूत ही है, इसमें संशय नहीं है। इसलिये विद्वान् पुरुषको चाहिये कि वह ईश्वरके वचनोंपर श्रद्धा करे। यथार्थ पुण्य-पापके विषयमें ईश्वरके वचनोंपर श्रद्धा न करनेवाला पुरुष नरकमें जाता है।
शान्त स्वभाववाले श्रेष्ठ मुनियोंने स्वर्ग और मोक्षकी सिद्धिके लिये जो सुन्दर बात कही है, उसे सुभाषित समझना चाहिये। जो वाक्य राग, द्वेष, असत्य, काम, क्रोध और तृष्णाका अनुसरण करनेवाला हो, वह नरकका हेतु होनेके कारण दुर्भाषित कहलाता है। अविद्या एवं रागसे युक्त वाक्य जन्म-मरणरूप संसार-क्लेशकी प्राप्तिमें कारण होता है।
अतः वह कोमल, ललित अथवा संस्कृत (संस्कारयुक्त) हो तो भी उससे क्या लाभ? जिसे सुनकर कल्याणकी प्राप्ति हो तथा राग आदि दोषोंका नाश हो जाय, वह वाक्य सुन्दर शब्दावलीसे युक्त न हो तो भी शोभन तथा करनेवाले समझने योग्य है। मन्त्रोंकी संख्या बहुत होनेपर भी जिस विमल षडक्षर-मन्त्रका निर्माण सर्वज्ञ शिवने किया है, उसके समान कहीं कोई दूसरा मन्त्र नहीं है।
षडक्षर-मन्त्रमें छहों अंगोंसहित सम्पूर्ण वेद और शास्त्र विद्यमान है; अतः उसके समान दूसरा कोई मन्त्र कहीं नहीं है। सात करोड़ महामन्त्रों और अनेकानेक उपमन्त्रोंसे यह षडक्षर-मन्त्र उसी प्रकार भिन्न है, जैसे वृत्तिसे सूत्र। जितने शिवज्ञान हैं और जो जो विद्यास्थान हैं, वे सब षडक्षर मन्त्ररूपी सूत्रके संक्षिप्त भाष्य हैं। जिसके हृदयमें ‘ॐ नमः शिवाय’ यह षडक्षर-मन्त्र प्रतिष्ठित है, उसे दूसरे बहुसंख्यक मन्त्रों और अनेक विस्तृत शास्त्रोंसे क्या प्रयोजन है?
जिसने ‘ॐ नमः शिवाय’ इस मन्त्रका जप दृढ़ता. पूर्वक अपना लिया है, उसने सम्पूर्ण शास्त्र पढ़ लिया और समस्त शुभ कृत्योंका अनुष्ठान पूरा कर लिया। आदिमें ‘नमः’ पदसे युक्त ‘शिवाय’- ये तीन अक्षर जिसकी जिह्वाके अग्रभागमें विद्यमान हैं, उसका जीवन सफल हो गया। पंचाक्षर-मन्त्रके जप में लगा हुआ पुरुष यदि पण्डित, मूर्ख, अन्त्यज अथवा अधम भी हो तो वह पापपंजरसे मुक्त हो जाता है।
Source:- सक्षिप्त शिव पुराण – गीताप्रेस
Shiv Panchakshar Mantra
‘Om Namah Shivay’ mantra is called शिव Panchakshar mantra.
Panchakshara literally means ‘five letters’ in Sanskrit and refers to the five sacred letters Na, Ma, Shi, Va and Ya.The prayer to Lord Shiva written by Adi Shankaracharya is Nagendraharaya Trilochanaya, and it is associated with Shiva’s mantra Om Namah Shivay. Therefore Nagendraharaya Trilochanay is also called Panchakshari Mantra. The five verses of this stotra start with the letters Na, Ma, Shi, Va, Ya respectively.Shiva Panchakshar Stotra is based on Panchakshari Mantra Namah Shivay.Na – represents earth element, Ma – represents water element, Shi – represents fire element, Va – represents air element and Ya – represents sky element.
The greatness of Panchakshar Mantra has been described in detail in Shiv Purana. Here we are describing the importance of the mantra “Om Namah Shivay” mentioned in Shiv Purana: –
Shri Krishna said – Omniscient Maharishi Pravara! You are the ocean of complete knowledge. Now I want to hear from you the principled description of the greatness of the Panchakshar-Mantra.
Upamanyu said- Devkinandan! The greatness of Panchakshar Mantra cannot be described in detail even in a hundred crore years; Therefore, listen to its glory in brief – both in the Vedas and in Shaivagam, this six-letter (five-letter including Pranav) mantra has been said to be the seeker of complete meaning for all Shiva devotees. There are few letters in this mantra, but it is full of great meaning. This is the essence of Veda. It is the giver of salvation, it is proved by the order of Shiva, it is free from doubt and it is a statement in the form of Shiva.
It is a divine word full of various types of achievements, pleasing and purifying the minds of people, having definite meaning (or definitely fulfilling the desires) and a serious word of God. This mantra is pronounced with pleasure. Omniscient Shiva has recited this mantra ‘Om Namah Shivay’ for the fulfillment of all the desires of all the embodied beings. This Adi Shadakshar-Mantra is the seed (root) of all the knowledge (mantras). Just as a great tree is hidden in the seed of a banyan tree, similarly this mantra, despite being very subtle, should be considered full of great meaning.
In this monosyllabic mantra ‘Om’, Lord Shiva is distinguished by all three qualities – past, omniscient, omnipotent, luminous, omnipresent. Ishaan etc., who are subtle monosyllabic forms of Brahma, are all situated respectively in this mantra ‘Namah Shivay’. In the micro-shadakshar mantra, Lord Shiva in the form of Panchabrahma is naturally present in the direct voice. Due to being irrational, Shiva is the speaker and the mantra is considered to be his speaker.
This concept of direct and indirect use of Shiva and mantra has been going on since time immemorial. Just as this terrible worldly ocean has been prevalent since time immemorial, in the same way, Lord Shiva, the one who frees me from the world, has also been present continuously since time immemorial. Just as medicine is the natural enemy of diseases, similarly Lord Shiva is considered the natural enemy of worldly evils.
Had it not been for Lord Vishwanath, this world would have become completely dark; Because nature is inanimate and the soul is ignorant. Therefore, it is God who gives them light. Whatever material element, from nature to the atom, has not been seen to be the ‘doer’ itself without some intelligent (conscious) cause.
For the sake of living beings, advice is given to do righteousness and avoid unrighteousness. Their bondage and liberation are also seen. Therefore, by thinking, without the omniscient Supreme God Shiva, the Adisarga of living beings cannot be attained. Just as patients suffer without a doctor and are deprived of happiness, in the same way, worldly creatures suffer various types of troubles due to not taking shelter of the omniscient Shiva.
Hence, it is proved that the eternal omniscient and perfect Sadashiva is the one who saves the living beings from the worldly ocean. He is the Lord without beginning, middle and end. He is pure by nature and is omniscient and perfect. He should be known by the name Shiva. His form is described in detail in Shivagam. This Panchakshar-mantra is his Abhidhaan (speaker) and he is Shiva Abhidheya (speaker). Due to being abhidhana and abhidheya (speaker and spoken)-form, this mantra in the form of Param Shiva is considered ‘siddha’.
‘Om Namah Shivaya’, this six-syllable Shiva sentence, is Shiva’s knowledge and is the supreme position. This is Shiva’s method sentence, This is not a matter of meaning. This is the form of the same Shiva who is omniscient, perfect and naturally pure.
How can Lord Shiva who is the one who bestows his blessings on all the worlds, say a lie and bless all the worlds? He who is omniscient, can give as much benefit as can be obtained from mantras. Whatever is available, I will tell you as much as I can. But only those who are afflicted with defects like attachment and ignorance can tell a lie.
Those defects like attachment and ignorance are not present in God; hence how can God lie? One who is free from all defects There was never any introduction; the pure sentence – the five-letter mantra – composed by the omniscient Shiva is authentic, there is no doubt about it. Therefore a learned man should have faith in the words of God. A person who does not believe in God’s words regarding true virtue and sin goes to hell.
The beautiful things that the great sages with peaceful nature have said for the attainment of heaven and salvation should be considered as well spoken. The sentence which follows passion, hatred, untruth, lust, anger and thirst is called bad language because it leads to hell. Sentences containing ignorance and passion lead to the attainment of worldly suffering in the form of birth and death. Therefore, even if it is soft, fine or cultured, what is the benefit of it?
By listening to which one attains well-being and gets rid of defects like passion etc., even if that sentence is not full of beautiful words, it is worthy of being understood by those who do it. Despite the large number of mantras, there is no other mantra like the Vimal Shadakshar Mantra created by the omniscient Shiva.
The entire Vedas and scriptures along with the six parts are present in Shadakshar-Mantra; Therefore, there is no other mantra like it anywhere. This Shadakshar-Mantra is different from the seven crore Mahamantras and innumerable Upmantras in the same way as the Vrittise Sutra. All the knowledge of Shiva and all the places of learning are brief commentaries on the Sutra in the form of Shadakshar Mantra. The one who has this Shadakshar-Mantra ‘Om Namah Shivay’ established in his heart, should be blessed with innumerable other mantras and many detailed scriptures.
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