रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम लिरिक्स(Shiv Tandav Stotram Lyrics) संस्कृत में और अर्थ हिंदी में
|| शिव तांडव स्तोत्रम (original)||
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थलेगलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयंचकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥
हिंदी में अनुवाद : जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।
जटा कटा हसम भ्रमम भ्रमन्नि लिंपनिर्झरी विलोलवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि ||
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ल ललाट पट्टपावके किशोर चंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममम || 2 ||
हिंदी में अर्थ : मेरी शिव में गहरी रुचि है, जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है, जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं? जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधु बंधुर-स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मान मानसे ||कृपा कटाक्ष धारणी निरुद्ध दुर्धरापदिकवचिददिगम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि || 3 ||
हिंदी में अर्थ : जो पर्वतराजसुता(पार्वती जी) के विलासमय रमणिय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनके कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त कब आनंदित होगा ।
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ॥मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरेमनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
हिंदी में अर्थ : जिनकी जटाओं में रहने वाले सर्पों के फणों की मणियों का फैलता हुआ प्रभापुंज दिशा रुपी स्त्रियों के मुख पर कुंकुम का लेप कर रहा है। मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का वस्त्र धारण करने से स्निग्ध वर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत आनंद करे।
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रि पीठभूः ||भुजंगराज मालया निबद्ध जाटजूटकःश्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः || 5 ||
हिंदी में अर्थ : जिनकी चरण पादुकाएं इन्द्र आदि देवताओं के प्रणाम करने से उनके मस्तक पर विराजमान फूलों के कुसुम से धूसरित हो रही हैं। नागराज के हार से बंधी हुई जटा वाले वे भगवान चंद्रशेखर मुझे चिरस्थाई संपत्ति देनेवाले हों।
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजय स्फुरिगभा-निपीत पंचसायकम निमन्निलिंप नायम् ||सुधा मयुख लेखया विराज मानशेखरंमहा कपालि संपदे शिरोजया लमस्तू नः || 6 ||
हिंदी में अर्थ : जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पुज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।
कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृत प्रचंड पंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्र चित्र पत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम || 7 ||
हिंदी में अर्थ : जिन्होंने अपने विकराल ललाट पर धक् धक् जलती हुई प्रचंड अग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया था। गिरिराज किशोरी के स्तनों पर पत्रभंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान त्रिलोचन में मेरा मन लगा रहे।( यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है)
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्ध रस्फुर-त्कुहु निशीथि नीतमः प्रबंध बंधु कंधरः ||निलिम्प निर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरःकला निधान बंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः || 8 ||
हिंदी में अर्थ : जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पनता प्रदान करें ।
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंच कालि मच्छटा-विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंध कंधरम् ||स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदंगजच्छिदांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे || 9 ||
हिंदी में अर्थ : जिनका कंठ खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव ( संसार ), दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी संहार करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।
अखर्व सर्वमंगला कला कदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ||स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकंगजांत कांध कांतकं तमंत कांतकं भजे || 10 ||
हिंदी में अर्थ : जो अभिमान रहित पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के मकरंद स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले भँवरे हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।
जयत्वद भ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंग मश्वसद,विनिर्ग मक्र मस्फुरत्कराल भाल हव्यवाट् ||धिमिन्ध मिधि मिन्ध्व नन्मृदंग तुंगमंगल-ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः || 11 ||
हिंदी में अर्थ: अत्यंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंण अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।
दृषद्विचित्र तल्पयोर्भुजंग मौक्तिकम स्रजो-र्गरिष्ठरत्न लोष्टयोः सुहृद्विपक्ष पक्षयोः ||तृणार विंद चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोःसमं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे || 12 ||
हिंदी में अर्थ : पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न और मिटटी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तिनका या कमल के समान आँखों वाली युवती में, प्रजा और पृथ्वी के राजाओं में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ?
कदा निलिं पनिर्झरी निकुज कोटरे वसन्विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकःशिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् || 13 ||
हिंदी में अर्थ: कब मैं गंगा जी के तटवर्ती वन के भीतर में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फ निर्भक्षरन्म धूष्णिका मनोहरः ||तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं महनिशंपरिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः || 14 ||
हिंदी में अर्थ : देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणीमहाष्ट सिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना ||विमुक्त वाम लोचनो विवाह कालिक ध्वनिःशिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् || 15 ||
हिंदी में अर्थ : प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ ।
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवंपठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम् ||हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिंविमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम || 16 ||
हिंदी में अर्थ : जो मनुष्य इस उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता है, वह सदा पवित्र रहता है और शीघ्र ही भगवान शंकर की भक्ति प्राप्त कर लेता है। वह विरुद्ध गति को प्राप्त नहीं करता क्योंकि शिव जी का ध्यान तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त करने वाला है।
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतंयः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ||तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तांलक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः || 17 ||
हिंदी में अर्थ : सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर जो रावण के गाये हुए इस शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान शंकर उस मनुष्य को रथ, गज, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहने वाली संपत्ति प्रदान करते हैं।
|| शिव तांडव स्तोत्र समाप्त ||
शिव तांडव स्तोत्र पढ़ने का सही नियम
स्नान और शुद्धता: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान कर लें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
स्थान चयन: पाठ किसी पवित्र स्थान पर, विशेष रूप से शिवलिंग या शिव मंदिर के पास करें।
दिशा: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके पाठ करना शुभ माना जाता है।
समय: सुबह के समय ब्रह्म मुहूर्त में या शाम के समय पाठ करना सबसे लाभकारी होता है।
ध्यान और समर्पण: पाठ से पहले भगवान शिव का ध्यान करें और उनके प्रति समर्पण भाव रखें।
आरती और दीप जलाना: पाठ करते समय दीप जलाएं और अगरबत्ती का उपयोग करें।
संख्या: स्तोत्र का 3, 7 या 11 बार पाठ करना विशेष फलदायक माना जाता है।
मौन व्रत: पाठ के दौरान मौन रहना चाहिए और ध्यान को भंग नहीं करना चाहिए।
श्रद्धा और विश्वास: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में
Shiv Tandava Stotra for Easy PRONUNCIATION
जटा टवी गलज् जल प्रवाह पावितस्थले (पावित: थले)
गले अवलंब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् ।
डमड् डमड् डमड् डमन्नि नाद वड्ड मर्वयं
चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
जटा कटाह सम्भ्रम भ्रमन्नि लिम्प निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराज मान मूर्धनि ।
धगद धगद धगज् ज्वल ललाट पट्ट पावके
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फ़ुरद दिगंत सन्तति प्रमोद मान मानसे ।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धर आपदि
क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि ॥३॥
जटा भुजंग पिंगल स्फुरत् फ़णा मणि प्रभा
कदम्ब कुङ्कुम द्रव प्रलिप्त दिग् वधू मुखे ।
मदान्ध सिन्धुर स्फुरत्त् त्व गुत्तरीय मेदुरे (त्वग उत्तरीय मेदुरे)
मनो विनोद मद्भूतं बिभर्तु भूत भर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर_
प्रसून धूलि धोरणी विधू सराङ्ग़ ध्रि पीठभूः ।
भुजङ्ग राज मालया निबद्ध जाट जूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः ॥५॥
ललाट चत्वर ज्वलद् धनञ्जय स्फु लिङ्गभा_
निपीत पञ्च सायकं नमन्नि लिम्प नायकम् ।
सुधा मयूख लेखया विराज मान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटाल मस्तु नः ॥६॥
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज् ज्वल्ल् (ज्वल्ल्द)
धनंजय आहुतिकृत प्रचण्ड पञ्च सायके ।
धराधरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रति र्मम ॥७॥
नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत्_
कुहू निशी थिनी तमः प्रबन्धबद्ध कन्धरः ।
निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कलानिधान बन्धुरः श्रियं जगद धुरंधर: ॥८॥
प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा_
वलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिद आन्धकच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी_
रसप्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधु व्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे ॥१०॥
जय त्वद भ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्गम अश्वस (अश्वसद्_)
विनिर् गमत् क्रम स्फ़ुरत कराल भाल हव्य वाट ।
धिमिद धिमिद धिमिद् ध्वन मृदंग तुङ्ग मङ्गल_
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद् विचित्र तल्पयोर् भुज़ँग मौक्ति कस्रजोर्_
गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुहृद् विपक्ष पक्षयोः ।
तृणार विन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः
सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥
कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थ मञ्जलिं वहन् ।
विलोल लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथ नागरी कदम्ब मौल मल्लिका-
निगुम्फ निर्भक्ष अरन्म धूष्णिका मनोहरः ||
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं
महनिशं परिश्रय परं पदं तदं गज अत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवा अनल प्रभा शुभ प्रचारणी
महाष्ट सिद्धि कामिनी जना वहूत जल्पना ||
विमुक्त वाम लोचनो विवाह कालिक ध्वनिः
शिवेति मन्त्र भूषगो जग अज्जयाय जायताम् || १५ ||
इमं हि नित्यमेव मुक्त मुत् मौत्तमम स्तवं
(इमं हि नित्यम एवं उक्तम उत्मोत्तमम स्तवं )
पठन् स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धि मेति संततम् ।
हरे गुरौ सुभक्ति माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥१६ ॥
पूजावसान (पूजा अवसान) समये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजन परं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्रतुरङ्ग युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
शिव तांडव स्तोत्र पढ़ने के फायदे
- शांति और सकारात्मक ऊर्जा:
इस स्तोत्र के पाठ से मन को शांति मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। - आध्यात्मिक उन्नति:
यह स्तोत्र आत्मा को जागृत करता है और भगवान शिव के प्रति भक्ति को गहरा करता है। - समस्याओं का समाधान:
शिव तांडव स्तोत्र के नियमित पाठ से जीवन की बाधाएं और समस्याएं दूर होती हैं। - धन और समृद्धि:
भगवान शिव की कृपा से आर्थिक उन्नति और समृद्धि प्राप्त होती है। - स्वास्थ्य लाभ:
यह स्तोत्र शरीर और मन को स्वस्थ रखने में सहायक है। - शत्रुओं से रक्षा:
इस स्तोत्र के पाठ से शत्रु भय दूर होते हैं और सुरक्षा मिलती है। - मोक्ष की प्राप्ति:
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। - धार्मिक फल:
यह पाठ पुण्य की प्राप्ति कराता है और भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद देता है।
शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गान है, जो उनकी शक्ति और करुणा का वर्णन करता है। इसे श्रद्धा और नियम के साथ पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति आती है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. शिव तांडव कब पढ़ना चाहिए?
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से सोमवार को, महाशिवरात्रि, श्रावण के सोमवार, या किसी भी शिव-पर्व पर करना शुभ माना जाता है। इसे सुबह या शाम के समय शुद्ध मन से पढ़ा जा सकता है, लेकिन किसी भी दिन और किसी भी समय भगवान शिव की आराधना के लिए इसका पाठ किया जा सकता है।
2.क्या हम रात में शिव तांडव स्तोत्रम सुन सकते हैं?
जी हाँ, शिव तांडव स्तोत्र को रात में सुनना पूरी तरह से मान्य है। यह स्तोत्र शिवजी की महिमा का गान करता है और इसे सुनने से मन को शांति, साहस, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। रात में सुनने का भी कोई दोष नहीं है।
3. शिव तांडव में कितने श्लोक होते हैं?
शिव तांडव स्तोत्र में कुल 17 श्लोक होते हैं। ये श्लोक रावण द्वारा भगवान शिव की महिमा में रचे गए थे, और इसमें शिवजी के रूप और तांडव नृत्य की सुंदरता का वर्णन है।
4. शिव तांडव रोज पढ़ने से क्या होता है?
रोज शिव तांडव का पाठ करने से व्यक्ति की ऊर्जा, साहस, और सकारात्मकता बढ़ती है। यह तनाव को कम करता है, मन को शांति देता है और नकारात्मकता से रक्षा करता है। साथ ही, यह भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का मार्ग भी है, जिससे व्यक्ति के जीवन में शांति और सफलता का संचार होता है।
5. क्या हम रात में शिव स्तोत्रम सुन सकते हैं?
हाँ, शिव स्तोत्र को रात में सुनना भी पूरी तरह से उपयुक्त है। भगवान शिव की स्तुति का समय-सीमा से बंधन नहीं है, इसलिए श्रद्धा से किसी भी समय इसे सुना जा सकता है।
6. शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें?
शिव तांडव स्तोत्र को याद करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इसमें संस्कृत के श्लोक और कठिन शब्द होते हैं। लेकिन यदि इसे कुछ विशेष तरीकों से नियमित रूप से अभ्यास किया जाए, तो इसे आसानी से याद किया जा सकता है। यहाँ शिव तांडव स्तोत्रम को याद करने का आसान तरीका बताया गया हैं:
1. अर्थ को समझें
शिव तांडव स्तोत्र को याद करने से पहले हर श्लोक का अर्थ समझने की कोशिश करें। जब आप शब्दों का मतलब समझेंगे, तो उन्हें याद रखना आसान हो जाएगा। इस प्रकार श्लोकों का क्रम और भाव समझकर मन में आसानी से बैठ सकते हैं। शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा से शुरू करें
2. छोटे भागों में बांटें
पूरे स्तोत्र को एक बार में याद करने की बजाय, इसे छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर याद करें। हर दिन 1-2 श्लोक याद करने का प्रयास करें। जब हर भाग याद हो जाए, तब धीरे-धीरे सभी श्लोकों को जोड़कर याद करें।
3. हर रोज पुनरावृत्ति करें
शिव तांडव स्तोत्र को प्रतिदिन एक बार जरूर पढ़ें। हर दिन नियमित अभ्यास करने से यह आपकी स्मृति में बस जाएगा। बार-बार दोहराने से याद करना आसान हो जाता है और लंबे समय तक याद रहता है।
4. लय और संगीत के साथ याद करें
शिव तांडव स्तोत्र को गाने या लय में पढ़ने का प्रयास करें। इसे किसी शास्त्रीय संगीत के माध्यम से या कोई रिकॉर्डिंग सुनकर भी याद किया जा सकता है। लय में पढ़ने से इसे स्मरण करना सरल हो जाता है।
5. लिखकर अभ्यास करें
लिखकर याद करने की आदत से शिव तांडव को याद करना आसान हो सकता है। रोज एक श्लोक लिखें, और बार-बार उसे पढ़ें। लिखने से भी आपकी स्मरण शक्ति में यह स्थायी हो जाएगा।
6. मोबाइल ऐप्स और ऑडियो रिकॉर्डिंग का प्रयोग करें
आजकल कई मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन ऑडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध हैं जो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करते हैं। इसे बार-बार सुनें और साथ में दोहराएँ, इससे भी याद करने में मदद मिलेगी।
7. ध्यान और भक्ति के साथ पढ़ें
जब शिव तांडव को याद करें, तो इसे पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ें। जब आप इसे भगवान शिव को समर्पण भाव से पढ़ेंगे, तो इसे याद करना सरल लगेगा।
इन सरल तरीकों को अपनाकर आप शिव तांडव स्तोत्र को आसानी से और स्थायी रूप से याद कर सकते हैं।